एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी और
आवाज लगाई भिक्षां देहि’..!!!
एक नन्ही बालिका बाहर आई
और बोली, ‘‘बाबा, हम गरीब हैं,
हमारे पास देने को कुछ नहीं है।’’
संत बोले,
‘‘बेटी, मना मत कर,
अपने आंगन की धूल ही दे दे।’’
लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और भिक्षा
पात्र में डाल दी ।
शिष्य ने पूछा, गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा
है ?
आपने धूल देने को क्यों कहा ?’’
संत बोले,
‘‘बेटे, अगर आज ना कह देती तो फिर कभी
नहीं दे पाती ।
आज धूल दी तो क्या हुआ,
देने का संस्कार तो पड़ गया ।
आज धूल दी है,
कल .फल-फूल भी देगी ।’’
मित्रो एक बात जो मैंने जानी है नास्तिक केवल वो नहीं
होता जो मन्दिर ना जाये या पूजा पाठ न करे नास्तिक
वह भी होता है जो हर बात को नकारत्मक रूप में ले ।
और नकारत्मक सोच की शुरुवात बचपन से लग जाती है
आवाज लगाई भिक्षां देहि’..!!!
एक नन्ही बालिका बाहर आई
और बोली, ‘‘बाबा, हम गरीब हैं,
हमारे पास देने को कुछ नहीं है।’’
संत बोले,
‘‘बेटी, मना मत कर,
अपने आंगन की धूल ही दे दे।’’
लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और भिक्षा
पात्र में डाल दी ।
शिष्य ने पूछा, गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा
है ?
आपने धूल देने को क्यों कहा ?’’
संत बोले,
‘‘बेटे, अगर आज ना कह देती तो फिर कभी
नहीं दे पाती ।
आज धूल दी तो क्या हुआ,
देने का संस्कार तो पड़ गया ।
आज धूल दी है,
कल .फल-फूल भी देगी ।’’
मित्रो एक बात जो मैंने जानी है नास्तिक केवल वो नहीं
होता जो मन्दिर ना जाये या पूजा पाठ न करे नास्तिक
वह भी होता है जो हर बात को नकारत्मक रूप में ले ।
और नकारत्मक सोच की शुरुवात बचपन से लग जाती है
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