Quotes in Hindi by Swami Vivekananda (स्वामी विवेकानन्द )
1: उठो, जागो
और तब तक
नहीं रुको जब
तक लक्ष्य ना
प्राप्त हो जाये।
2: उठो मेरे
शेरो, इस भ्रम
को मिटा दो
कि तुम निर्बल
हो , तुम एक
अमर आत्मा हो,
स्वच्छंद जीव हो,
धन्य हो, सनातन
हो , तुम तत्व नहीं
हो , ना ही
शरीर हो , तत्व
तुम्हारा सेवक है
तुम तत्व के
सेवक नहीं हो।
3: ब्रह्माण्ड कि सारी
शक्तियां पहले से
हमारी हैं। वो
हमीं हैं जो
अपनी आँखों पर
हाँथ रख लेते
हैं और फिर
रोते हैं कि
कितना अन्धकार है!
4: जिस तरह
से विभिन्न स्रोतों
से उत्पन्न धाराएँ अपना जल
समुद्र में मिला
देती हैं ,उसी
प्रकार मनुष्य द्वारा चुना
हर मार्ग, चाहे
अच्छा हो या
बुरा भगवान तक जाता
है।
5: किसी की
निंदा ना करें.
अगर आप मदद
के लिए हाथ
बढ़ा सकते हैं,
तो ज़रुर बढाएं.अगर नहीं
बढ़ा सकते, तो
अपने हाथ जोड़िये,
अपने भाइयों को
आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें
उनके मार्ग पे
जाने दीजिये।
6: कभी मत
सोचिये कि आत्मा
के लिए कुछ
असंभव है. ऐसा
सोचना सबसे बड़ा
विधर्म है.अगर
कोई पाप
है, तो वो
यही है; ये
कहना कि तुम
निर्बल हो
या अन्य निर्बल
हैं.
7: अगर धन
दूसरों की भलाई करने
में मदद करे,
तो इसका कुछ
मूल्य है, अन्यथा,
ये सिर्फ बुराई
का एक ढेर
है, और इससे
जितना जल्दी छुटकारा
मिल जाये उतना
बेहतर है.
8: जिस समय
जिस काम के
लिए प्रतिज्ञा करो,
ठीक उसी समय
पर उसे करना
ही चाहिये, नहीं
तो लोगो का
विश्वास उठ जाता
है।
9: उस व्यक्ति
ने अमरत्त्व प्राप्त
कर लिया है,
जो किसी सांसारिक वस्तु से
व्याकुल नहीं होता।
10: हम वो
हैं जो हमें
हमारी सोच ने
बनाया है, इसलिए
इस बात का
धयान रखिये कि
आप क्या सोचते
हैं। शब्द
गौण हैं. विचार
रहते हैं, वे
दूर तक यात्रा
करते हैं।
11: जब तक
आप खुद पे
विश्वास नहीं करते
तब तक आप
भागवान पे विश्वास
नहीं कर सकते।
12: सत्य को
हज़ार तरीकों से
बताया जा सकता
है, फिर भी
हर एक सत्य
ही होगा।
13: विश्व एक व्यायामशाला
है जहाँ
हम खुद को
मजबूत बनाने के
लिए आते हैं।
14: जिस दिन
आपके सामने कोई
समस्या न आये
- आप यकीन कर
सकते है की
आप गलत रस्ते
पर सफर कर
रहे है।
15: यह जीवन
अल्पकालीन है, संसार
की विलासिता क्षणिक
है, लेकिन जो
दुसरो के लिए
जीते है, वे
वास्तव में जीते
है।
16: एक शब्द
में, यह आदर्श
है कि तुम
परमात्मा हो।
17: भगवान् की एक
परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए
, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर।
18 : यदि
स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता , तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया
होता।
19: हम
जितना ज्यादा बाहर
जायें और दूसरों
का भला करें,
हमारा ह्रदय उतना
ही शुद्ध होगा
, और परमात्मा उसमे
बसेंगे।
20: बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
21: जिस
क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर
एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं
, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा
- उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ , हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी
, और मैं स्वतंत्र हूँ।
22: वेदान्त कोई पाप नहीं जानता
, वो केवल त्रुटी जानता है। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटी यह
कहना है कि
तुम कमजोर हो
, तुम पापी हो
, एक तुच्छ प्राणी हो
, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते।
23: जब
कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
24: भला
हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर
एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते।
25: तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता
, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता
. तुम्हारी आत्मा के
आलावा कोई और
गुरु नहीं है।
26: पहले हर
अच्छी बात का
मज़ाक बनता है,
फिर उसका विरोध
होता है, और
फिर उसे स्वीकार
कर लिया जाता
है।
27: दिल
और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
28: किसी दिन , जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
29: स्वतंत्र होने का साहस करो।
जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो
, और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।
30: किसी चीज से डरो
मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
31: प्रेम विस्तार है
, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है।
वह जो प्रेम करता है जीता है
, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो
, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है
, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
32: सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना।
स्वयं पर विश्वास करो।
33: सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है
: वह पुरुष या
स्त्री जो
बदले में कुछ नहीं मांगता
, पूर्ण रूप से निस्स्वार्थ व्यक्ति , सबसे सफल है।
34: जो
अग्नि हमें गर्मी देती है , हमें नष्ट भी कर सकती है
; यह अग्नि का दोष नहीं है।
35: बस
वही जीते हैं
,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
36: शक्ति जीवन है
, निर्बलता मृत्यु है
. विस्तार जीवन है
, संकुचन मृत्यु है
. प्रेम जीवन है , द्वेष मृत्यु है।
37: हम
जो बोते हैं
वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है
; वो जहाज जिनके पाल खुले हैं
, इससे टकराते हैं
, और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं
, पर जिनके पाल बंधे हैं
हवा को नहीं पकड़ पाते।
क्या यह हवा की गलती है
?…..हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं।
38: ना
खोजो ना बचो
, जो आता है ले लो।
39: शारीरिक
, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी
आपको कमजोर बनाता है
- , उसे ज़हर
की तरह त्याग दो।
40: एक
समय में एक काम करो
, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
41: कुछ
मत पूछो
, बदले में कुछ मत मांगो
,जो देना है वो दो
; वो तुम तक वापस आएगा
, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
42: जो
तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि
तुम खुद को कमजोर सोचते हो
, तुम कमजोर हो जाओगे
; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो
, तुम ताकतवर हो जाओगे।
43: मनुष्य की सेवा करो। भगवान की सेवा करो।
44: मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं
; चमक उठती हैं।
45:आकांक्षा , अज्ञानता , और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
46: यह
भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में
ऐसा है जो
आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से उसके सारे बंधन तोड़ देता है।
47: कुछ
सच्चे , इमानदार और उर्जावान पुरुष और महिलाएं
; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं।
48: जब
लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद
दो। सोचो , तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर
निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
49: खुद
को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
50: धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं।
51: श्री रामकृष्ण कहा करते थे
,” जब तक मैं जीवित हूँ
, तब तक मैं सीखता हूँ ”. वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है।
52: जीवन का
रहस्य केवल आनंद
नहीं है बल्कि
अनुभव के माध्यम
से सीखना है।
53: कामनाएं समुद्र की
भांति अतृप्त है,
पूर्ति का प्रयास
करने पर उनका
कोलाहल और बढ़ता
है।
54: स्त्रियो की स्थिति
में सुधार न
होने तक विश्व
के कल्याण का
कोई भी मार्ग
नहीं है।
55: भय ही
पतन और पाप
का मुख्य कारण
है।
56: आज्ञा देने की
क्षमता प्राप्त करने से
पहले प्रत्येक व्यक्ति
को आज्ञा का
पालन करना सीखना
चाहिए।
57: प्रसन्नता अनमोल खजाना
है छोटी -छोटी
बातों पर उसे
लूटने न दे।
58: जितना बड़ा संघर्ष
होगा जीत उतनी
ही शानदार होगी।
59: जगत को
जिस वस्तु की
आवश्यकता होती है
वह है चरित्र।
संसार को ऐसे
लोग चाहिए जिनका
जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत
प्रेम का उदाहरण
है। वह प्रेम
एक -एक शब्द
को वज्र के
समान प्रतिभाशाली बना
देगा।
60: हम भले
ही पुराने सड़े
घाव को स्वर्ण
से ढक कर
रखने की चेष्टा
करे, एक दिन
ऐसा आएगा जब
वह स्वर्ण वस्त्र
खिसक जायेगा और
वह घाव अत्यंत
वीभत्स रूप में
आँखों के सामने
प्रकट हो जायेगा।
61: जब तक
लोग एक ही
प्रकार के ध्येय
का अनुभव नहीं
करेंगे, तब तक
वे एकसूत्र से आबद्ध
नही हो सकते।
जब तक ध्येय
एक न हो,
तब तक सभा,
समिति और वक्तृता
से साधारण लोगो
एक नहीं कर
सकता।
62: यदि उपनिषदों
से बम की
तरह आने वाला
और बम गोले
की तरह अज्ञान
के समूह पर
बरसने वाला कोई
शब्द है तो
वह है 'निर्भयता'
63: अगर आप
ईश्वर को अपने
भीतर और दूसरे
वन्य जीवो में
नहीं देख पाते,
तो आप ईश्वर
को कही नहीं
पा सकते।
64: आदर्श, अनुशासन, मर्यादा,
परिश्रम, ईमानदारी और उच्च
मानवीय मूल्यों के बिना
किसी का जीवन
महान नहीं बन
सकता।
65: पढ़ने के
लिए जरूरी है
एकाग्रता, एकाग्रता के लिए
जरूरी है ध्यान।ध्यान
से ही हम
इन्द्रियों पर संयम
रखकर एकाग्रता प्राप्त
कर सकते है।
66: तुम्हारे ऊपर जो
प्रकाश है, उसे
पाने का एक
ही साधन है
- तुम अपने भीतर
का आध्यात्मिक दीप
जलाओ, पाप ऒर
अपवित्रता स्वयं नष्ट हो
जायेगी। तुम अपनी
आत्मा के उददात
रूप का ही
चिंतन करो।
67: संभव की
सीमा जानने केवल
एक ही तरीका
है असम्भव से
आगे निकल जाना।
68: स्वयं में बहुत
सी कमियों के
बावजूद अगर में
स्वयं से प्रेम
कर सकता हुँ
तो दुसरो में
थोड़ी बहुत कमियों
की वजह से
उनसे घृणा कैसे
कर सकता हुँ।
69: जन्म, व्याधि, जरा
और मृत्यु ये
तो केवल अनुषांगिक
है, जीवन में
यह अनिवार्य है,
इसिलिये यह एक
स्वाभाविक घटना है।
70: सुख और
दुःख सिक्के के
दो पहलु है।
सुख जब मनुष्य
के पास आता
है तो दुःख
का मुकुट पहन
कर आता है
71: जीवन का
रहस्य भोग में
नहीं अनुभव के
द्वारा शिक्षा प्राप्ति में
है।
72: विश्व में अधिकांश
लोग इसलिए असफल
हो जाते है,
क्योंकि उनमे समय
पर साहस का
संचार नही हो
पाता। वे भयभीत
हो उठते है।
73: किसी मकसद
के लिए खड़े
हो तो एक
पेड़ की तरह,
गिरो तो बीज
की तरह। ताकि
दुबारा उगकर उसी
मकसद के लिए
जंग कर सको।
74: पवित्रता, धैर्य तथा
प्रयत्न के द्वारा
सारी बाधाये दूर
हो जाती है।
इसमें कोई संदेह
नहीं की महान
कार्य सभी धीरे
-धीरे होते है।
75: लगातार पवित्र विचार
करते रहे, बुरे
संस्कारो को दबाने
के लिए एकमात्र
समाधान यही है।
76: जब तक
लाखो लोग भूखे
और अज्ञानी है
तब तक मै
उस प्रत्येक व्यक्ति
को गद्दार मानता
हुँ जो उनके
बल पर शिक्षित
हुआ और अब
वह उसकी और
ध्यान नही देता।
77: हमे ऐसी
शिक्षा चाहिए, जिसमे चरित्र
का निर्माण हो,
मन की शक्ति
बढ़े, बुद्धि का
विकास हो और
मनुष्य अपने पैर
पर खड़ा हो
सके।
78: मन की
एकाग्रता ही समग्र
ज्ञान है।
79: देश की
स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित
करे, यह मै
ह्रदय से चाहता
हूँ, लेकिन पवित्रता
की बलि देकर
यदि यह करना
पड़े तो कदापि
नहीं।
80: यही दुनिया
है! यदि तुम
किसी का उपकार
करो तो लोग
उसे कोई महत्व
नहीं देंगे, किन्तु
ज्यो ही तुम
उस कार्य को
बंद कर दो,
वे तुरंत तुम्हे
बदमाश साबित करने
में नहीं हिचकिचाएंगे।
81: जब
प्रलय का समय
आता है तो
समुद्र भी अपनी
मर्यादा छोड़कर किनारों को
छोड़ अथवा तोड़
जाते है, लेकिन
सज्जन पुरुष प्रलय
के समान भयंकर
आपत्ति एवं विपत्ति
में भी अपनी
मर्यादा नहीं बदलते।
82: दुनिया मज़ाक करे
या तिरस्कार, उसकी
परवाह किये बिना
मनुष्य को अपना
कर्त्तव्य करते रहना
चाहिये।
83: डर निर्बलता
की निशानी है।
84: जिंदगी का रास्ता
बना बनाया नहीं
मिलता है, स्वयं
को बनाना पड़ता
है, जिसने जैसा
मार्ग बनाया उसे
वैसी ही मंज़िल
मिलती है।
85: शुभ एवं
स्वस्थ विचारो वाला ही
सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
86: कर्म का
सिद्धांत कहता है
- 'जैसा कर्म वैसा
फल'. आज का
प्रारब्ध पुरुषार्थ पर अवलम्बित
है। 'आप ही
अपने भाग्यविधाता है'. यह
बात ध्यान में
रखकर कठोर परिश्रम
पुरुषार्थ में लग
जाना चाहिये।
87: इंसान को कठिनाइयों
की आवश्यकता होती
है क्योंकि सफलता
का आनंद उठाने
के लिए ये
जरूरी है
88: जो सत्य
है, उसे साहसपूर्वक
निर्भीक होकर लोगो
से कहो - उससे
लोगो को कष्ट
होता है या
नहीं, इस ओर
ध्यान मत दो।
दुर्बलता को कभी
प्रश्रय मत दो।
सत्य की ज्योति
बुद्धिमान मनुष्यो के लिए
यदि अत्यधिक मात्र
में प्रखर प्रतीत
होती है, और
उन्हें बहा ले
जाती है, तो
ले जाने दो
- वे जितना शीघ्र
बह जाए उतना
अच्छा ही है।
89: खड़े हो
जाओ, हिम्मतवान बनो,
ताकतवर बन जाओ,
सब जवाबदारिया अपने
सिर पर ओढ़
लो, और समझो
की अपने नसीब
के रचियता आप
खुद हो।
90: जिंदगी बहुत छोटी
है, दुनिया में
किसी भी चीज़
का घमंड अस्थाई
है पर जीवन
केवल वही जी
रहा है जो
दुसरो के लिए
जी रहा है,
बाकि सभी जीवित
से अधिक मृत
है।
91: आज अपने
देश को आवशयकता
है - लोहे के
समान मांसपेशियों और
वज्र के समान
स्नायुओं की। हम
बहुत दिनों तक
रो चुके, अब
और रोने की
आवश्यकता नहीं, अब अपने
पैरों पर खड़े
होओ और मनुष्य
बनो।
92: जिस शिक्षा
से हम अपना
जीवन निर्माण कर
सके, मनुष्य बन
सके, चरित्र गठन
कर सके और
विचारो का सामंजस्य
कर सके। वही
वास्तव में शिक्षा
कहलाने योग्य है।
93: एक नायक
बनो, और सदैव
कहो - "मुझे कोई
डर नहीं है"।
94: आपको अपने
अंदर से बाहर
की तरफ विकसित
होना पड़ेगा। कोई
भी आपको यह
नहीं सीखा सकता,
और न ही
कोई आपको आध्यात्मिक
बन सकता है।
आपकी अपनी अंतरात्मा
के अलावा आपका
कोई शिक्षक नही
है।
95: हमारा कर्तव्य है
की हम हर
किसी को उसका
उच्चतम आदर्श जीने के
संघर्ष में प्रोत्साहित
करे, और साथ
ही साथ उस
आदर्श को सत्य
के जितना निकट
हो सके लेन
का प्रयास करे।
96: हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें
; और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।
97: इस दुनिया
में सभी भेद-भाव किसी
स्तर के हैं,
ना कि प्रकार
के, क्योंकि एकता
ही सभी चीजों
का रहस्य है।
98: एक विचार
लो . उस विचार को अपना
जीवन बना लो
- उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो
, उस विचार को जियो . अपने मस्तिष्क
, मांसपेशियों , नसों , शरीर के
हर हिस्से को उस
विचार में डूब
जाने दो
, और बाकी सभी
विचार को किनारे रख दो
. यही सफल होने का
तरीका है।
99: तुम
फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।
100: कभी भी
यह न सोचे
की आत्मा के
लिए कुछ भी
असंभव है।
101: भय और
अधूरी इच्छाएं ही
समस्त दुःखो का
मूल है।
No comments:
Post a Comment