जीवन की प्रत्येक परिस्थिति के लिए दूसरों को दोषी ने ठहरायें।
आँगन में दो मिटटी के घड़े रखे थे । एक का मुँह आसमान की ओर, दूसरे का मुँह धरती की ओर । वर्षा आई । जो घड़ा ऊपर की तरफ उन्मुख था , भर गया । जो ओंधे मुँह लेता था , खली रह गया ।
खाली घड़े को बहुत गुस्सा आया , उसने भरे घड़े को गालियां दीं और वर्षा को भी कोसा ।
तब वर्षा बोली - "चिढ़ो मत, ईर्ष्या भी मत करो । पात्र को ही सब कुछ मिलता है । तुम भी ऊपर को मुँह कर लेते , तो तुम भी भर जाते । अभी भी प्रत्यन करो, सिर उठाओ भर जाओगे ।" घड़े ने बात समझ ली और भूल सुधर ली।
बिलकुल इसी तरह हम भी हमेशा दुसरो को दोष देते रहते हैं और ज़िन्दगी में कुछ नहीं कर पाते । आज जो भी हालत - परिस्थिति हमारे जीवन में है, वह हमरे की कर्मो के फलस्वरूप है । अतः यह समझने होगा कि अपने जीवन के लिए मैं स्वयं ही जिम्मेदार हूँ ।
एक बार एक पिता ने अपने बेटे के लिए १०० करोड़ का प्रोजेक्ट शुरू किया । लेकिन वो उसका लोन चूका नहीं पाये , उनका शरीर पहले ही शांत हो गया और लोन उनके बेटे के सिर पर आ गया । अब माँ, पिता को दोष देती है कि उनकी वजह से मेरे बेटे की ज़िन्दगी ख़राब हो गयी । पर सारा दोष पिता का नहीं है , बेटे का भी करम का हिसाब - किताब था ।
" जैसी दृष्टि , वैसी सृष्टि "
कोई बुरा नहीं है , हमारा मन ही बुरा है । हम अपने मन के लेंस से इस दुनिया को हैं । अगर हम Negative सोचेंगे की दुनिया बोहोत ख़राब है तो वाकई में दुनिया ख़राब नज़र आएगी । जैसे रंग का चस्मा हमारी आँखों पर लगा होगा , वैसे ही नज़र आएगा ।
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