सुचारू संगठन से सफलता । Team work is very important for the success.
जब भी कोई कार्य किया जाता है या तो उसमे हम सफल होते हैं या असफल । किसी भी कार्य को करने के लिए हम संगठन यानि Team की जरुरत पड़ती है। जो लोग unite and rule की पालिसी अपनाते हैं वो लोग हमेशा विजयी होते हैं।
एक बार एक पिता के मरने के बाद दो भाइयों में सारी जायदाद बराबर बराबर बाँट दी गयी। एक साल के अंदर एक भाई की जायदाद दुगनी हो गयी और दूसरा भाई कंगाल हो गया। एक रिपोर्टर ने खोज करनी शुरू की और पाया कि जो अपने कर्मचारियों से कहता 'जाओ काम करो' और खुद आराम से पड़ा रहता वो कंगाल हो गया, और जो अपने कर्मचारियों से कहता 'आओ मिलकर काम करें' और खुद उनके साथ काम करता , वह तरक्की करता गया।
किसी भी संगठन को सुचारू रूप से चलने के लिए संगठन का नेता वह उसके सदस्य में कुछ गन आवश्यक हैं, जो इस प्रकार हैं -
१) अनुकूलनशीलता (Adaptability)
'अगर आप संगठन की खातिर खुद को नहीं बदलेंगे , तो संगठन आपको बदल देगा '
संगठन को बेहतर बनाने के लिए अपने आप को बदलने के लिए तैयार रहें - I am willing to change.
नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तैयार रहें। इससे हम पहले से ज्यादा रचनात्मक बनते हैं।
अनुकूलशील बनने के लिए ज़्हुकना पड़ता है , नम्रता सीखनी पड़ती है , जिससे चुनौतियों का उत्साह के साथ सामना करने की क्षमता बढ़ती है। जो लोग बदलाव को स्वीकार करते हैं , वह भावनात्मक दृष्टि से सुरक्षित होते हैं।
२) सहयोग ( co-operation )
'मिलकर काम करना , मिलकर जीतने से पहले आता है '
सहयोग का मतलब सिर्फ मिलकर काम करना नहीं है, बल्कि इससे भी ज्यादा है । सहयोग का अर्थ है - आक्रामक तरीके से एक जुट होकर काम करना । सहयोग हमारी शक्ति को कहीं गुना भाड़ा देता है । पूरी निष्ठां , सतर्कता , विश्वास , संकल्प, साहस, कड़ी मेहनत के साथ एक दूसरे के पूरक बनें । खुद पर नहीं , टीम पर ज्यादा केंद्रित रहें। टीम की जीत होने पर आपकी जीत स्वतः है।
खास बात - अगर आपको लगता है की आपके शामिल न होने से टीम का प्रदर्शन बेहतर होता है तो खुद की बजाय दूसरों को आगे बढ़ाएं और उन्हें समर्थन दें।
३) समर्पण (commitment )
'जो काम करें , पुरे दिल से करें'
जिस पल से आप पूरी तरह से समर्पित होने का फैसला करते हैं , उसी पल से किस्मत भी आपका साथ देने लगती है । इस निर्णय के लेते ही आश्चर्यजनक तरीके से वह चीज़े , व्यक्ति आपके पास आने लगते हैं और वह घटनाएँ घटने लगती हैं , जो उस कार्य को करने में सहायक हैं ।
कई लोगो की आदत होती है कि वह समर्पण को अपनी भावनाओ से जोड़ लेते हैं । अगर वह अछा महसूस करते हैं तो समर्पण के साथ काम करते हैं। लेकिन सच्चा समर्पण इस तरह का नहीं होता । इंसान की भावनाएं ऊपर नीचे होती रहती हैं पर समर्पण चट्टान की तरह कठोर होना चाहिए।
अपने समर्पण के स्तर को बेहतर बनाने के लिए -
१) लक्ष्य पर दृष्टि रखें।
२) अभ्यास करें।
३) चुनौतियों का सामना उत्साह पूर्वक करें।
४) पुरे ह्रदय से अपना Best योगदान दें।
४) विश्वसनीयता (Trustworthiness )
'संगठन के सदस्य विश्वसनीय के पास जाते हैं '
विश्वसनीय होने पर ही संगठन के सदस्य आपसे कुछ पूछने के लिए आएंगे । विश्वास ही नहीं है तो पूछेंगे कैसे? इसके लिए अपने उददेश्यों को सही रखें और हर काम को सीखें। काम करने में गलतियां भी होती हैं , जिससे हम सीखते हैं।
स्वयं जो जाँचें -
१) क्या आप ऐसा निर्णय ले पाते हैं , जिन पर दूसरे भरोसा कर सकें ?
२) क्या मुश्किल समय में आपके साथी आसानी से आपके पास मदद मांगने आ पते हैं ?
यदि इन प्रश्नों का जवाब हाँ है तो तो आप विश्वसनीय यानि भरोसेमंद हैं ।
अपने को पहले से ज्यादा बेहतर बनाने के लिए अपना योगदान देते रहें ।
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